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Uttarakhand: ग्लेशियर झीलों में सेंसर! राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को भेजा प्रस्ताव

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 4 अप्रैल
  • 2 मिनट पठन
फोटो सौजन्य: अमर उजाला
फोटो सौजन्य: अमर उजाला

उत्तराखंड में स्थित ग्लेशियर झीलों के बढ़ते खतरे को देखते हुए राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए) ने इन झीलों की निगरानी के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। राज्य सरकार अब इन झीलों में सेंसर लगाने की तैयारी कर रही है ताकि इन झीलों में होने वाले किसी भी प्रकार के बदलाव का समय रहते पता चल सके और आवश्यक सुरक्षा उपाय किए जा सकें। इस उद्देश्य के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) को 30 करोड़ रुपये का प्रस्ताव भेजा गया है।


राज्य में कुल 13 ग्लेशियर झीलों की पहचान की गई है, जिनमें से पांच झीलें विशेष रूप से अधिक संवेदनशील मानी जाती हैं। इन झीलों में किसी भी प्रकार की अनहोनी से निपटने के लिए इनका अध्ययन किया जा रहा है। पिछले वर्ष, चमोली जिले में स्थित वसुंधरा ताल का अध्ययन किया गया था। इस वर्ष पिथौरागढ़ जिले की पांच और गंगोत्री के आगे स्थित केदारताल का अध्ययन करने का निर्णय लिया गया है। इन झीलों के अध्ययन से यह पता चलेगा कि इनकी स्थिति कैसी है और क्या इनमें कोई बदलाव हो रहा है जो भविष्य में आपदा का कारण बन सकता है।


आपदा प्रबंधन विभाग का कहना है कि इस साल पांच झीलों का अध्ययन किया जाएगा, जिसमें पिथौरागढ़ जिले की चार ग्लेशियर झीलें शामिल हैं। इसके अलावा, इन झीलों में सेंसर लगाने की योजना भी बनाई गई है, जिससे इनके जलस्तर और अन्य स्थितियों की निगरानी की जा सके। सेंसरों के माध्यम से यदि झीलों में कोई असामान्य परिवर्तन होता है, तो उसे तत्काल पहचानने और उस पर कार्रवाई करने की सुविधा मिलेगी।


राज्य आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास सचिव, विनोद कुमार सुमन ने बताया कि इस योजना का उद्देश्य झीलों में अचानक परिवर्तन या हिमस्खलन जैसे खतरों की पहले से पहचान करना और समय रहते सुरक्षा उपायों को लागू करना है। इसके लिए एनडीएमए को 30 करोड़ रुपये का प्रस्ताव भेजा गया है, ताकि झीलों में सेंसर लगाने और अन्य अध्ययन कार्यों के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध हो सके।


ग्लेशियर झीलों में सेंसर लगाने की यह योजना राज्य की प्राकृतिक आपदाओं के प्रति सतर्कता और पूर्व तैयारी को बढ़ावा देने की दिशा में एक अहम कदम साबित हो सकती है। इससे न केवल झीलों की स्थिति का सटीक आकलन किया जा सकेगा, बल्कि किसी भी आपदा के खतरे को पहले से भांपकर आवश्यक कदम उठाए जा सकेंगे।

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