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अर्पित की मेहनत और पिता का बलिदान: गोल्ड लोन से लेकर स्वर्ण पदक तक, हर चुनौती को किया पार

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 22 जन॰
  • 3 मिनट पठन



जब किसी व्यक्ति के भीतर सफलता को हासिल करने की दृढ़ इच्छाशक्ति हो, तो वह विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए भी अपने सपनों को साकार कर सकता है। चमोली जिले की एक छोटी सी सीमांत घाटी नीति से ताल्लुक रखने वाले 17 वर्षीय टेबल टेनिस खिलाड़ी अर्पित ने इसे सच कर दिखाया। उनके पास टेबल टेनिस का रैकेट खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, लेकिन उनके पिता ने गोल्ड लोन लेकर उन्हें रैकेट दिलवाया। अर्पित ने भी अपनी मेहनत से यह कर्ज चुकाया और स्वर्ण पदक जीतकर पिता को सोना लौटाया।


जीवन की शुरुआत और संघर्ष

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अर्पित का सफर तब शुरू हुआ जब वह देहरादून में वेल्फील्ड स्कूल में पढ़ाई के लिए आए। एक दिन स्कूल में खेलते हुए उन्होंने अपने दोस्त को टेबल टेनिस खेलते देखा और उनके मन में इस खेल को खेलने की इच्छा जागृत हो गई। जब अर्पित ने अपने पिता प्रेम हिंदवाल से अपनी चाहत के बारे में बताया, तो उन्होंने बच्चे की रुचि को समझते हुए उसे पूरा करने का निर्णय लिया। हालांकि, अर्पित के पास अपने खेल को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक संसाधन नहीं थे, लेकिन उनके पिता ने बिना किसी हिचकिचाहट के इस दिशा में कदम बढ़ाया।


अर्पित ने स्कूल के एक सीनियर से 200 रुपये में एक पुराना रैकेट खरीदा और यहीं से उनके खेल की शुरुआत हुई। अर्पित ने अपनी कड़ी मेहनत और उत्साह से जल्द ही खुद को साबित कर दिया, और हर किसी को अपनी प्रतिभा से चौंका दिया। लेकिन अब उन्हें बेहतर रैकेट और प्रशिक्षक की जरूरत थी, जो उनके खेल को और उन्नति की दिशा में ले जा सके।



रैकेट और कोचिंग का संघर्ष

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अर्पित के पिता ने रिश्तेदारों से पैसे जुटाकर उन्हें 8000 रुपये का एक नया रैकेट दिलवाया। हालांकि, आगे बढ़ने के लिए उन्हें एक अच्छे कोच की भी आवश्यकता थी, जिनकी फीस 3000 रुपये प्रति माह थी। आर्थिक स्थिति से जूझते हुए, अर्पित ने प्रशिक्षक विपिन प्रिंस से संपर्क किया, जिन्होंने उनकी मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति को देखा और एक महीने की ट्रेनिंग के बाद अर्पित को निशुल्क कोचिंग देने का फैसला किया।


लेकिन संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ। अब उन्हें 16000 रुपये का एक और रैकेट चाहिए था। इस बार उनके पिता ने गोल्ड लोन लेकर उसे खरीदा। यही वह रैकेट था, जिसके साथ अर्पित ने स्वर्ण पदक जीता और यह उनकी कड़ी मेहनत और पिता की बलिदान का प्रतिफल था।



नए रैकेट की आवश्यकता और मदद का हाथ

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समय के साथ, अर्पित का रैकेट खराब हो गया, और एक बार फिर उन्हें नए रैकेट की आवश्यकता थी। इस बार घर में रखा सोना पहले ही गिरवी था, लेकिन नीति माणा घाटी जनजाति कल्याण समिति ने सामने आकर मदद का हाथ बढ़ाया। समिति ने करीब 30,000 रुपये की धनराशि जुटाई, जिससे अर्पित को नया रैकेट खरीदने में मदद मिली और उनके सपने को नया जीवन मिला।



राज्य के लिए पदक जीतने का लक्ष्य

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अब अर्पित राष्ट्रीय खेलों में हिस्सा लेने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। उन्होंने तीनों चयन सत्रों में सफलता प्राप्त की है और पहली बार अंडर-19 टेबल टेनिस स्पर्धा में भाग लेने जा रहे हैं। इसके लिए वह रोजाना सात से आठ घंटे अभ्यास कर रहे हैं। अर्पित का विश्वास अडिग है, और उनका कहना है, "मैं राज्य के लिए पदक जरूर जीतूंगा।



अर्पित का अब तक का सफर

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-स्कूल फेडरेशन ऑफ इंडिया अंडर-17 और अंडर-19 में स्वर्ण पदक

-राज्य चैंपियनशिप अंडर-19 में कांस्य पदक

-अल्मोड़ा में आयोजित अंतरराज्यीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक

-इंटर स्कूल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक

-राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में भी भाग लिया



अर्पित ने अपनी कठिनाइयों और संघर्षों से यह सिद्ध कर दिया कि मेहनत, दृढ़ संकल्प और सही मार्गदर्शन के साथ कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। उनका यह सफर न केवल उनकी कड़ी मेहनत की कहानी है, बल्कि उन सभी के लिए प्रेरणा भी है, जो जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं।

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