बद्री विशाल के लिए तेल कलश यात्रा, गाडू घड़े को डिमरी पंचायत-बद्रीनाथ धाम के रावल ही छू सकते हैं!
- ANH News
- 6 दिन पहले
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भगवान बद्री विशाल के कपाट खुलने की प्रक्रिया धार्मिक परंपरा के अनुसार टिहरी जिले के नरेंद्रनगर राजदरबार से कलश यात्रा के प्रस्थान के साथ आरंभ होती हैं. बसंत पंचमी के दिन राजपुरोहित राजमहल में महाराजा की जन्म कुंडली देखकर भगवान बद्री विशाल के कपाट खुलने की तिथि तय करते हैं. इसी दिन तिल का तेल पिरोने की भी तारीख तय की जाती है. भगवान बदरी विशाल के अभिषेक के लिए टिहरी राजपरिवार ही प्रयुक्त होने वाले तिलों के तेल की व्यवस्था करता है.

नरेंद्रनगर राजमहल में गाडू घड़े से निकले तेल से ही होता है भगवान का अभिषेक:
- सबसे भगवान का तेल से अभिषेक किया जाता है.
- इसके बाद उन्हें स्नान इत्यादि कराकर भगवान् की पूजा की जाती है.
- पौराणिक मान्यता के मुताबिक टिहरी रियासत के राजाओं को बोलांदा बद्री (बोलने वाले बदरी) कहा जाता है. इसीलिए धाम के कपाट खोलने का मुहूर्त राजाओं की कुंडली देखकर निकाला जाता है.
- तेल पिरोने के दौरान सुहागिन महिलाएं पीले वस्त्र पहनकर प्रक्रिया को पूरा करती हैं.
- केवल सुहागिन महिलाये ही इस प्रकिया का हिस्सा होती है.
- महिलाये पूरी तरह से सिर-मुंह ढ़ककर तेल पिरोने का कार्य करती है.
- भगवान के अभिषेक के लिए तिल का ही तेल तैयार किया जाता है.
- सुहागिन महिलाये और राजपरिवार की महिलाये सिलबट्टे और ओखली की मदद से तिलो को पीसकर तेल निकालती है.
- इसके बाद तिलों को हाथ से मलकर निकाला जाता है.
- फिर इसे पीले कपड़े से छानकर राजमहल में रखे एक विशेष बर्तन में रखकर आग पर गर्म करते हैं ताकि उसका पानी सूख सके
- तेल बनने के बाद उसे एक घड़े में भरा जाता है जिसे 'गाडू घड़ा' पुकारा जाता हैं.
- तेल को चांदी के कलश में रख दिया जाता है, जिसे केवल डिमरी पंचायत और बद्रीनाथ धाम के रावल ही छू सकते हैं.