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Dehradun में खुला पहला आधुनिक मदरसा, बच्चों को विज्ञान, संस्कृत के साथ अरबी भी सिखाई जाएगी

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 19 जन॰
  • 2 मिनट पठन



उत्तराखंड वक्फ बोर्ड ने मदरसों के आधुनिकीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इस संदर्भ में, देहरादून में राज्य का पहला आधुनिक मदरसा तैयार हो चुका है, जिसका नाम पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रखा गया है। यह मदरसा आधुनिक शिक्षा प्रणाली के तहत संचालित होगा, जिसमें एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम लागू किया जाएगा। यहाँ बच्चों को अरबी के साथ-साथ विज्ञान और संस्कृत जैसी विषयों की भी शिक्षा दी जाएगी। इस शैक्षणिक सत्र (अप्रैल 2025) से मदरसा प्रारंभ हो जाएगा, और पहले चरण में कक्षा 1 से 6 तक के विद्यार्थियों को पढ़ाई दी जाएगी।


उत्तराखंड में वर्तमान में कुल 419 पंजीकृत मदरसे हैं, जिनमें से 117 मदरसे वक्फ बोर्ड द्वारा संचालित किए जाते हैं। बोर्ड के अध्यक्ष, शादाब शम्स ने कहा कि बोर्ड का उद्देश्य उन बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान करना है, ताकि वे भविष्य में डॉक्टर, इंजीनियर और अन्य उच्च पदों पर पहुंच सकें। उन्होंने यह भी बताया कि पहले चरण में 10 मदरसों को आधुनिक बनाने का लक्ष्य रखा गया है। देहरादून स्थित रेलवे स्टेशन के पास मुस्लिम कालोनी में पहला आधुनिक मदरसा तैयार हो चुका है, जिसका शैक्षिक सत्र निकाय चुनाव के बाद शुरू किया जाएगा।


वक्फ बोर्ड के सीईओ, सैय्यद सिराज उस्मान ने बताया कि इस आधुनिक मदरसे में छह कक्षाओं के अलावा कंप्यूटर कक्ष, मीटिंग हॉल और स्टाफ रूम भी बनाए गए हैं। मदरसा के निर्माण पर 50 लाख रुपये की लागत आई है और इसमें लगभग 200 छात्र-छात्राओं के पढ़ने की क्षमता है। मदरसा में दाखिला प्रक्रिया मार्च से शुरू होगी और अप्रैल से शैक्षिक सत्र प्रारंभ होगा। इस पहल से बोर्ड की योजना मदरसों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने और बच्चों को हर क्षेत्र में उत्कृष्टता की ओर प्रेरित करने की है।


वहीं, राज्य सरकार बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों को निशुल्क चिकित्सा सेवाएं प्रदान कर रही है। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत गंभीर जन्मजात बीमारियों जैसे हृदय रोग, न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट, श्रवण बाधा, मोतियाबिंद, कटे होंठ और तालू, तथा टेडे पैर जैसी समस्याओं का निशुल्क इलाज किया जा रहा है। 2024-25 के वित्तीय वर्ष में, डीईआईसी केंद्र के माध्यम से 5,000 से अधिक बच्चों को चिकित्सा सेवाएं दी जा चुकी हैं।


राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की निदेशक स्वाति भदौरिया ने बताया कि राज्य स्तरीय निगरानी समिति का गठन किया गया है, जो राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम और डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर के सुदृढ़ीकरण पर काम करेगा। इस समिति की पहली बैठक शनिवार को आयोजित की गई, जिसमें मिशन निदेशक ने बताया कि कार्यक्रम के प्रभावी संचालन के लिए कई स्तरों पर कार्य किया जा रहा है। इसमें आशा कार्यकर्ता बच्चों के जन्म से लेकर छह सप्ताह तक उनके घर जाकर उनकी देखभाल करती हैं, जबकि राज्य में 148 मोबाइल हेल्थ टीम्स, आंगनवाड़ी केंद्रों और सरकारी/सहायता प्राप्त अशासकीय संस्थाओं के माध्यम से 18 वर्ष तक के बच्चों का निरंतर स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है। बीमार बच्चों को उच्च चिकित्सा इकाइयों में भेजकर विशेष उपचार प्रदान किया जाता है।


इन पहलों से उत्तराखंड में बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा दोनों ही क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सुधार की उम्मीद जताई जा रही है।

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