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हरिद्वार में बैसाखी की आस्था में डूबी सुबह, घाटों पर उमड़ा श्रद्धा का सैलाब, पुलिस प्रशासन मुस्तैद

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 14 अप्रैल
  • 2 मिनट पठन

हरिद्वार: धर्म की नगरी में रविवार को बैसाखी पर्व की पावन बेला पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। हर की पैड़ी समेत समस्त गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान कर पुण्य अर्जित किया और आस्था की डुबकी लगाकर सुख-समृद्धि की कामना की। बैसाखी, जो न केवल फसल कटाई का पर्व है, बल्कि भाईचारे, ऊर्जा और लोकसंस्कृति का उत्सव भी है, हरिद्वार में पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है।


यात्रा सुगम, व्यवस्था सख्त: यातायात और सुरक्षा के कड़े इंतजाम

बैसाखी स्नान के अवसर पर पुलिस प्रशासन ने विशेष यातायात और सुरक्षा योजना लागू की है। शनिवार रात 12 बजे से स्नान संपन्न होने तक भारी वाहनों का प्रवेश वर्जित किया गया है, जिससे नगर क्षेत्र में भीड़ नियंत्रित रहे और किसी प्रकार की असुविधा न हो।


वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रमेंद्र सिंह डोबाल ने यातायात रूट, पार्किंग स्थलों और सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सख्त दिशा-निर्देश जारी किए हैं। उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि यात्री सुविधाजनक रूप से स्नान कर सकें और किसी प्रकार की अव्यवस्था न हो।



मेला क्षेत्र बना सुरक्षा कवच: सुपर ज़ोन से सेक्टर तक हर कोना निगरानी में

बैसाखी मेले के आयोजन क्षेत्र को चार सुपर जोन, 13 जोन और 40 सेक्टरों में बांटकर सुरक्षा व्यवस्था को अत्यंत संगठित बनाया गया है।

-कंट्रोल रूम से सीसीटीवी कैमरों के माध्यम से मेला क्षेत्र की चौबीसों घंटे निगरानी की जा रही है।

-सादे वस्त्रों में तैनात पुलिसकर्मी, बॉम्ब डिटेक्शन स्क्वॉड (BDS) और डॉग स्क्वॉड निरंतर सक्रिय रहकर किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर नजर रखे हुए हैं।


यह कड़ा सुरक्षा कवच श्रद्धालुओं की सुरक्षा और पर्व की शांति को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लागू किया गया है।


बैसाखी: आस्था, कृषि और उत्सव का संगम – मुख्यमंत्री का संदेश

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को बैसाखी पर्व की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह पर्व हर्ष, उल्लास और भाईचारे का प्रतीक है। उन्होंने इसे नई फसल के आगमन, कृषि संस्कृति की समृद्ध परंपरा, और लोक आस्था की गहराई से जोड़ते हुए कहा कि:


"बैसाखी हमारी सांस्कृतिक विरासत, मेहनतकश किसानों की परंपरा और सामाजिक एकता का उत्सव है। यह पावन अवसर सभी के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाए।"


गंगा की गोद में बसा विश्वास, पर्व बना व्यवस्था का उदाहरण

हरिद्वार में मनाई जा रही बैसाखी, एक बार फिर यह दर्शा रही है कि श्रद्धा और प्रशासनिक प्रबंधन जब एक साथ चलते हैं तो एक पावन पर्व न केवल आध्यात्मिक, बल्कि सामाजिक रूप से भी सफल होता है।


गंगा की गोद में डूबी आस्था, व्यवस्थाओं की सख्ती में सुरक्षित भीड़, और पर्व की भावना में लिपटा भाईचारा — यही है आज की धर्मनगरी हरिद्वार की छवि।

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