
भारतीय संस्कृति में रसोई का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है, और यह केवल भोजन बनाने तक सीमित नहीं है। यहां हर क्रिया और वस्तु का जीवन पर गहरा प्रभाव होता है, और रोटी बेलने की प्रक्रिया भी इससे अलग नहीं है। आजकल कई लोग चकला-बेलन का उपयोग करने के बजाय सीधे रसोई की स्लैब पर रोटी बेलते हैं, लेकिन क्या यह वास्तु शास्त्र के अनुसार सही है? आइए, इसे विस्तार से समझते हैं।
वास्तु शास्त्र और रसोई में चकला-बेलन का महत्व
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ज्योतिषाचार्य डॉ. गौरव कुमार दीक्षित के अनुसार, वास्तु शास्त्र में चकला-बेलन को सुख-समृद्धि और समृद्ध जीवन का प्रतीक माना गया है। इनका संबंध विशेष रूप से राहु और केतु ग्रहों से जोड़ा जाता है। सही तरीके से चकला-बेलन का उपयोग करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और इससे ग्रह दोषों का निवारण भी होता है। यह परंपरा न केवल एक आदत है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक और शास्त्रिक प्रक्रिया भी है, जो हमारे जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालती है।
स्लैब पर रोटी बेलने के नकारात्मक प्रभाव
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यदि चकला-बेलन का उपयोग न करके सीधे रसोई की स्लैब पर रोटी बेली जाती है, तो यह घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश करा सकता है। इसके परिणामस्वरूप, घर के वातावरण में अशांति उत्पन्न हो सकती है, जिससे धन हानि और सुख-समृद्धि में रुकावटें आ सकती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चकला-बेलन का उपयोग न करने से अन्नपूर्णा देवी नाराज हो सकती हैं, जो घर में अन्न की कमी का कारण बन सकती हैं। इसके अतिरिक्त, चकला-बेलन का संबंध राहु और केतु ग्रहों से होने के कारण, इनका उपयोग न करने से इन ग्रहों का नकारात्मक प्रभाव बढ़ सकता है, जो परिवार के सदस्यों की सफलता, खुशहाली और समृद्धि पर प्रतिकूल असर डाल सकता है।
इस प्रकार, वास्तु शास्त्र के अनुसार, रोटी बेलने के लिए चकला-बेलन का उपयोग करना न केवल पारंपरिक रूप से सही है, बल्कि यह हमारे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसके प्रयोग से न केवल घर में सुख-समृद्धि का वास होता है, बल्कि यह हमारे जीवन को भी उन्नति की दिशा में अग्रसर करता है।